Rahat indori best shayari

अगर हिल आफ हैं होने दो जान थोड़ी है। यह सब दुआ है। कोई आसमान थोड़ी है लगेगी। आग तो आएंगे घर कई ज़द में यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है। मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं। लेकिन हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है। हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है। हमारे मुंह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है। जो आज साहब बंद है, कल नहीं होंगे। किराएदार हैं। जाति मकान थोड़ी है सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में। किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।

اگر خلاف ہیں ہونے دو جان تھوڑی ہے
یہ سب دھواں ہے کوئی آسمان تھوڑی ہے
لگے گی آگ تو آئیں گے گھر کئی زد میں
یہاں پہ صرف ہمارا مکان تھوڑی ہے
میں جانتا ہوں کہ دشمن بھی کم نہیں لیکن
ہماری طرح ہتھیلی پہ جان تھوڑی ہے
ہمارے منہ سے جو نکلے وہی صداقت ہے
ہمارے منہ میں تمہاری زبان تھوڑی ہے
جو آج صاحب مسند ہیں کل نہیں ہوں گے
کرائے دار ہیں ذاتی مکان تھوڑی ہے
سبھی کا خون ہے شامل یہاں کی مٹی میں
کسی کے باپ کا ہندوستان تھوڑی ہے​
راحت اندوری

Rahat indori shayari photo shayari image Rahat indori

गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है

फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है

अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए
मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है

Rahat indori shayari photo shayari image Rahat indori

बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके
दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके

आसमानो की तरफ फेक दिया है मैंने
चंद मिट्टी के चिरागों को सितारा करके

एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके

मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके

आते जाते है कई रंग मेरे चेहरे पर
लोग लेते है मज़ा जिक्र तुम्हारा करके

मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके

सिर्फ खंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए,
ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए

मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिआ,
एक समन्दर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।

सिर्फ खबरों की ज़मीने देके मत बहलाइये
राजधानी दी थी हमने, राजधानी चाहिए

हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं

ज दुनिया में सुनाई दे उसे कहते है ख़ामोशी
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते है

जो ये दीवार का सुराख है साज़िश का हिस्सा है
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं

ये ख्वाहिश दो निवालों की हमें बर्तन की हाजत क्या
फ़क़ीर अपनी हथेली को ही दस्तरख्वान कहते हैं

मेरे अंदर से एक-एक करके सब कुछ हो गया रुखसत
मगर एक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते हैं

अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुँआ है कोई आसमान थोड़ी है |

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है |

हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है,
हमरे मुह में तुम्हारी जबान थोड़ी है |

मै जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं है,
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है |

आज शाहिबे मसनद है कल नहीं होंगे,
किरायेदार है जात्ती मकान थोड़ी है |

सभी का खून है शामिल इस मिट्टी में,
किसे के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है |

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके
दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके

आसमानो की तरफ फेक दिया है मैंने
चंद मिट्टी के चिरागों को सितारा करके

एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके

मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके

आते जाते है कई रंग मेरे चेहरे पर
लोग लेते है मज़ा जिक्र तुम्हारा करके

मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके

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